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न वो गांधी के हैं, न अंबेडकर के
न भगत सिंह उनके हीरो हैं, न सावरकर

वे राजगजरू,चन्द्रशेखर के यूँही नाम ले लेते हैं।
माटी से नाता जोड़ना तो बस मजबूरी है

जब मौका मिलता है, मानुषमांस खा लेते हैं।
ना इनने भगत सिंह को पढ़ा, ना बिस्मिल अशफाक को

वो इंसानियत के दुश्मन हैं, जांत पात कर लेते हैं।
टोपी उनकी बाहर की, कमीज पैंट सब आयातित है

लाठी उनकी गांधी की, यूँही राष्ट्रवाद कर लेते है!
छद्म नामसे छद्म कामसे, काम इनका चलता है

ये गांधी के हत्यारे हैं, यूँही गोडसे नाम ले लेते है।
(गांधीजी को नमन)